राजनीति के समंदर में दो बड़े राजनीतिक जहाज़ों को ओवर टेक कर आगे निकले मामूली सी कश्ती ने समंदर कि लहरों में भले ही तूफ़ान पैदा कर दिया हो लेकिन दिल्ली का तख़्त अभी भी अपने बादशाह के इंतज़ार में है ! राजनेतिक पंडितों कि गढ़ित हो या मीडिया में नेताओं और अनुभविओं कि लम्बी वार्ताएं, कोई भी गडित दिल्ली के समीकरण को सुलझाने में असमर्थ है ! क्या कहें इसपर दस जनपद कि राजनीति उसे तो आप और भाजपा ने आठ के आकड़े पर ही समेट दिया ! और दूसरी ओर 2014 में दिल्ली के तख़्त की चकाचोंध के सपने देख रही भाजपा को भी दिल्ली में जनता ने इतना नहीं सराहा कि वोह निसंकोच दिल्ली में हुकूमत करे ! दिल्ली कि राजनीति में बड़ा भूचाल लाने वाली आम आदमी पार्टी भी इस दौड़ में जीत कि पट्टी छूने से रह गई ! लेकिन एक बात तय है पहले चुनाव में 40 फीसदी का आकड़ा पाना एक काबिले तारीफ़ है ! लेकिन इसमें किसकी तारीफ़ है अरविंद केजरीवाल की जिन्होंने अन्ना के मूवमेंट से जुड़कर दिल्ली सरकार से भरष्टाचार के खिलाफ लोकपाल बिल कि मांग को लेकर आम लोगों के बीच खूब लोकप्रयता बटोरी ! अन्ना के मूवमेंट के दोरान कपिल सिब्बल, राजनाथ सिंह आज़म खान सहित और कई राजनेतिक चेहरों ने अन्ना टीम को राजनैनिक दल बनाने कि सलाह दी ! लेकिन अन्ना ने इंकार कर दिया ! अरविंद केजरीवाल को ऐसा लगा कि सिर्फ अनशन से काम नहीं बनेगा ! अरविंद ने आम आदमी पार्टी बनाई और एक साल में ही दिल्ली विधान सभा चुनाव में 40 फीसदी सीटें लाकर 2014 के लोकसभा चुनाव में त्रिकोड़ा मुकाबले के संकेत दिए !